responsibility, accountability, obligation और duty, ये ऐसी चीजें हैं, जो गर्वनमेंट और Business हाउस का रिलेशन डिफाइन करती हैं। यानी दोनों सेक्टर एक-दूसरे से कनेक्टेड हैं। Business governance की बात करें, तो यह कुछ रूल्ज और कानूनों का, एक काँबिनेशन है, जिसके जरिए बिजनेस को ऑपरेट, रेगुलेट और कंट्रोल किया जाता है, जो कंपनी के stakeholders, shareholders, customers और suppliers के साथ-साथ, बिजनेस से जुड़ी हर चीज को इफेक्ट करते हैं। एग्रीकल्चर के बाद, बिजनेस हाउस में सबसे ज्यादा इॅम्पलोयमेंट जेनरेट होती है। जिस भी एरिया में कोई कंपनी खुलती है, वहां के लोगों को रोजगार के मौके मिलते हैं। एक बिजनेस हाउस, न सिर्फ उसके फाउंडर, बल्कि कई लोगों से जुड़ा होता है। यह सीधे तौर पर देश की ग्रोथ का सिंबल है। इस सेक्टर का, सरकार के साथ, एक्टिव रिलेशन है, जहां दोनों के कार्य या डिसिजन, एक- दूसरे को इफेक्ट करते हैं। दोनो ही सेक्टर, एक-दूसरे पर डिपेंडेंट हैं, और एक दूसरे से एक्सपेक्टेशन रखते हैं।
Business houses के लिए, सरकार ऐसे कानून बनाती है, जिससे बिजनेस का पूरा सिस्टम smoothly काम कर पाए। इसमें सभी इक्नोमिक ओर बिजनेस लॉ के साथ-साथ, एक proper judicial system आता है। सरकार के नियम -कानून ही तय करते हैं कि एक बिजनेस हाउस क्या कर सकता है और क्या नहीं। उदाहरण के लिए आपने भी देखा होगा कि सरकार कई फैक्ट्रियों के लिए प्रदूषण को लेकर कानून बनाती है, जिन्हें उन्हें अनिवार्य तौर पर follow करना पड़ता है। सिर्फ एनवायरनमेंट को लेकर ही नहीं, बल्कि हर आर्थिक, सोशल और पॉलिटिकल पहलू को ध्यान में रखते हुए, कानून बनाए जाते हैं। और Business हाउस पर उन नियमों को लागू करने के लिए, सरकार Central Bank, Food and Drug Administration, Labor Commission जैसी कुछ specialized एजंसियां बनाती है, जो पूरे बिजनेस सिस्टम को मोनिटर और कंट्रोल करती हैं। किसी भी बिजनेस हाउस से गर्वनमेंट क्या उम्मीद रखती है, वो कंपनी Regular Tax पे करे। वहीं, बिजनेस सेक्टर भी यह चाहता है कि सरकार ऐसे कानून बनाए, जिससे उनकी ग्रोथ हो, न कि डिफरेंट रूल रेगुलेशन की वजह से उन्हें अड़चनों का सामना न करना पड़े। बिजनेस सेक्टर के फाइनांशियल वर्ल्ड में सरकार एक अहम रोल निभाती है, क्योंकि कंपनी पर सब्सिडी और टैक्स का लाँग लास्टिंग इफेक्ट पड़ता है। कई गांव या एरिया के विकास के लिए, सरकार उम्मीद करती है कि बिजनेस हाउस, उस एरिया में कंपनी खोलें। जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके। ऐसी जगहों पर निवेश करना, ज्यादा रिस्की है, इसलिए सरकार को, बिजनेस हाउस को वित्तीय सहायता और सब्सिडी के साथ-साथ, एमरजेंसी में सहयोग का आश्वासन यानी assurance देनी चाहिए, ताकि वो ऐसी जगहों पर इन्वेस्ट करने का रिस्क ले सकें।
Business houses के लिए, सरकार ऐसे कानून बनाती है, जिससे बिजनेस का पूरा सिस्टम smoothly काम कर पाए। इसमें सभी इक्नोमिक ओर बिजनेस लॉ के साथ-साथ, एक proper judicial system आता है। सरकार के नियम -कानून ही तय करते हैं कि एक बिजनेस हाउस क्या कर सकता है और क्या नहीं। उदाहरण के लिए आपने भी देखा होगा कि सरकार कई फैक्ट्रियों के लिए प्रदूषण को लेकर कानून बनाती है, जिन्हें उन्हें अनिवार्य तौर पर follow करना पड़ता है। सिर्फ एनवायरनमेंट को लेकर ही नहीं, बल्कि हर आर्थिक, सोशल और पॉलिटिकल पहलू को ध्यान में रखते हुए, कानून बनाए जाते हैं। और Business हाउस पर उन नियमों को लागू करने के लिए, सरकार Central Bank, Food and Drug Administration, Labor Commission जैसी कुछ specialized एजंसियां बनाती है, जो पूरे बिजनेस सिस्टम को मोनिटर और कंट्रोल करती हैं। किसी भी बिजनेस हाउस से गर्वनमेंट क्या उम्मीद रखती है, वो कंपनी Regular Tax पे करे। वहीं, बिजनेस सेक्टर भी यह चाहता है कि सरकार ऐसे कानून बनाए, जिससे उनकी ग्रोथ हो, न कि डिफरेंट रूल रेगुलेशन की वजह से उन्हें अड़चनों का सामना न करना पड़े। बिजनेस सेक्टर के फाइनांशियल वर्ल्ड में सरकार एक अहम रोल निभाती है, क्योंकि कंपनी पर सब्सिडी और टैक्स का लाँग लास्टिंग इफेक्ट पड़ता है। कई गांव या एरिया के विकास के लिए, सरकार उम्मीद करती है कि बिजनेस हाउस, उस एरिया में कंपनी खोलें। जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके। ऐसी जगहों पर निवेश करना, ज्यादा रिस्की है, इसलिए सरकार को, बिजनेस हाउस को वित्तीय सहायता और सब्सिडी के साथ-साथ, एमरजेंसी में सहयोग का आश्वासन यानी assurance देनी चाहिए, ताकि वो ऐसी जगहों पर इन्वेस्ट करने का रिस्क ले सकें।